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एमबीबीएस एक ऐसा नोबल प्रोफेशन है जो आपको एक रिवार्डिंग करियर प्रदान करने के साथ-साथ पेशेंट्स की दृष्टि में भगवान का दर्जा भी दिलवा देता है. अधिकांश एमबीबीएस ग्रेजुएट्स एमएस या एमडी में से कोई एक ऑप्शन चुनते समय कंफ्यूज हो जाते हैं. एमबीबीएस करने के बाद क्या आपको तुरंत जॉब ज्वाइन कर लेनी चाहिये या फिर, अपनी हायर स्टडीज जारी रखनी चाहिए? यह प्रश्न मेडिकल स्टूडेंट्स के दिमाग में अक्सर घूमता रहता है. हम इस आर्टिकल के माध्यम से आपके सारे ऐसे संशय दूर करेंगे. आइये आगे पढ़ें यह आर्टिकल:
एक डॉक्टर के प्रोफेशन में जाने के इच्छुक सभी लोग यह अच्छी तरह से जानते हैं कि, एमएस जनरल सर्जरी में मास्टर डिग्री है जबकि एमडी जनरल मेडिसिन में मास्टर डिग्री है. ये दोनों ही पोस्टग्रेजुएशन कोर्सेज हैं और केवल एमबीबीएस कोर्स पूरा करने के बाद ही मेडिकल लाइन के स्टूडेंट्स अपनी इच्छा के मुताबिक इन कोर्सेज में से किसी एक कोर्स में एडमिशन ले सकते हैं. एमडी के स्टडी एरिया में नॉन-सर्जिकल ब्रांच शामिल है जबकि एमएस में केवल सर्जिकल स्टडीज को ही शामिल किया जाता है. इसी तरह, अगर आप एक हार्ट सर्जन या न्यूरोसर्जन बनना चाहते हैं तो आपको अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद एमएस कोर्स में एडमिशन लेना चाहिए. लेकिन, अगर आप जनरल फिजिशियन बनना चाहते हैं तो आपको एमडी डिग्री कोर्स में एडमिशन लेना चाहिए.
एमएस और एमडी में स्टडी की कई ब्रांचेज हैं. एमबीबीएस ग्रेजुएट्स अपनी पसंद और पैशन के अनुसार अपना स्टडी सब्जेक्ट और स्ट्रीम चुन सकते हैं. एमडी या एमएस कोर्स सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद, आप गवर्नमेंट और प्राइवेट सेक्टर के हॉस्पिटल्स में जॉब प्राप्त करने के लिए अप्लाई कर सकते हैं. इसके अलावा, आप अपना क्लिनिक, नर्सिंग होम या हॉस्पिटल खोल सकते हैं. मेडिसिन ग्रेजुएट्स के लिए एक और ऑप्शन यह है कि वे एक टीचिंग फैकल्टी के तौर पर कोई मेडिकल कॉलेज ज्वाइन कर सकते हैं.
एमएस और एमडी का भावी स्कोप
जॉब रोल्स, प्रोफाइल्स और सैलरीज के संबंध में एमएस और एमडी कोर्सेज के प्रॉस्पेक्ट्स अलग-अलग हैं. जिस व्यक्ति ने एमएस किया है, वह सर्जन बनेगा और जिस व्यक्ति ने एमडी कोर्स किया है वह फिजिशियन बनेगा. यह बिलकुल सामान्य बात है कि किसी सर्जन की जिम्मेदारियां किसी फिजिशियन से हमेशा ज्यादा होती हैं. इसके अलावा, किसी सर्जन की कमाई किसी जनरल फिजिशियन के मुकाबले में ज्यादा होती है. फिर भी, एमएस कोर्स में इन्क्यूबेशन पीरियड एमडी कोर्स की अवधि से अधिक होता है. एक सर्जन मेडिसिन की अच्छी जानकारी रखने पर किसी जनरल फिजिशियन का काम कर सकता है लेकिन, एक फिजिशियन कभी सर्जन नहीं बन सकता है.
हालांकि, यह पूरी तरह किसी कैंडिडेट या छात्र के एप्टीट्यूड, पैशन और पसंद पर निर्भर करता है कि वह एमएस कोर्स करे या फिर, एमडी कोर्स. उक्त दोनों एरियाज में करियर प्रॉस्पेक्ट्स बहुत अच्छे हैं और समय बीतने के साथ ज्यादा से ज्यादा रिवार्डिंग हो जाते हैं.
एमएस और एमडी में लोकप्रिय स्पेशलाइजेशन्स
एमडी और एमएस डिग्रीज में लोकप्रिय स्पेशलाइजेशन कोर्सेज निम्नलिखित हैं:
एमडी | एमएस |
न्यूरोलॉजी और एनास्थेसियोलॉजी | प्लास्टिक सर्जरी |
ऑब्सटेट्रिक्स और गाईनेकोलॉजी | पीडियाट्रिक सर्जरी |
कार्डियोलॉजी | ईएनटी |
ऑर्थोपेडिक्स | गाईनेकोलॉजी |
एंडोक्रिनोलॉजी | कार्डियो-थोरेसिक सर्जरी |
गाईनेकोलॉजी | ऑपथैल्मोलॉजी |
इंटरनल मेडिसिन | ऑर्थोपेडिक्स |
डर्मेटोलॉजी | ऑब्सटेट्रिक्स |
पैथोलोजी | कॉस्मेटिक सर्जरी |
पीडियाट्रिक | कार्डियक सर्जरी |
साइकाइट्री | यूरोलॉजी |
रेडियो-डायग्नोसिस |
एमएस और एमडी कोर्सेज की अवधि
अक्सर, एमएस या एमडी कोर्स 3 वर्ष में पूरा हो जाता है लेकिन, किसी मास्टर स्पेशलाइजेशन कोर्स के लिए कैंडिडेट को एमएस या एमडी कोर्स पूरा करने के बाद 2 वर्ष और लगाने पड़ते हैं.
एमडी या एमएस कोर्सेज करने के लिए कुछ टॉप मेडिकल इंस्टिट्यूट्स निम्नलिखित हैं:
हॉस्पिटल मैनेजमेंट
हॉस्पिटल मैनेजमेंट एमबीबीएस ग्रेजुएट्स के लिए सबसे ज्यादा पसंदीदा करियर ऑप्शन के तौर पर उभरा है. यह उन कैंडिडेट्स के लिए आदर्श करियर ऑप्शन है जो किसी फिजिशियन या सर्जन के तौर पर काम नहीं करना चाहते हैं बल्कि, एक मैनेजर के तौर पर काम करना चाहते हैं. इसके अलावा, हॉस्पिटल मैनेजमेंट एक रिवार्डिंग करियर ऑप्शन है और इसके तहत वैसे सख्त कामकाज और ड्यूटीज शामिल नहीं होते हैं जो अक्सर किसी जनरल फिजिशियन या सर्जन के वर्क रोल में शामिल होते हैं. हॉस्पिटल मैनेजमेंट में सैलरी पैकेज भी काफी अच्छा होता है. आईआईएमज (इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट) यह कोर्स करवाता है, जो 100% कैंपस प्लेसमेंट की गारंटी देता है. इस कोर्स की अवधि 2 वर्ष की होती है.
क्लिनिकल प्रैक्टिस
क्लिनिकल प्रैक्टिस कोर्स आजकल उन एमबीबीएस ग्रेजुएट्स के बीच काफी लोकप्रिय हो रहा है जो आगे हायर स्टडीज नहीं करना चाहते हैं लेकिन, अपने क्लिनिक्स खोलना चाहते हैं. क्लिनिकल प्रैक्टिस केवल फाइनेंशल फ्रीडम ही नहीं देती है बल्कि, आपको अपनी गति के अनुसार काम करने की सुविधा भी प्रदान करती है. अपनी एमबीबीएस पूरी करने के बाद, आप अपने बजट, वर्क-फोर्स और स्किल सेट के मुताबिक अपना नर्सिंग होम या हॉस्पिटल खोल सकते हैं.
अब भी, हमारे सामने वही फैक्ट मौजूद है कि स्टूडेंट्स या कैंडिडेट्स को अपने इंटरेस्ट और एप्टीट्यूड के आधार पर बहुत सावधानीपूर्वक अपनी स्टडी स्ट्रीम का चयन करना चाहिए. चाहे वह एमडी कोर्स हो या एमएस कोर्स, यह पूरी तरह कैंडिडेट्स पर निर्भर करता है कि वे बाहरी दुनिया के प्रभाव में आये बिना उक्त दोनों कोर्सेज में से अपने लिए सबसे ज्यादा सूटेबल स्टडी कोर्स ही चुनें. एक सब्जेक्ट के तौर पर एमएस कोर्स केवल वे लोग ही कर सकते हैं जिनका दिल काफी मजबूत हो और उन्हें सर्जरी कोर्स में काफी रूचि हो. इस पेशे में सफल होने के लिए आपके पास आर्टिस्टिक स्किल्स, नॉलेज, पैशन, डेडिकेशन और हार्ड वर्क जैसे सभी गुणों का उचित मिश्रण होना चाहिए.
एमडी और एमएस करने वाले स्टूडेंट्स का प्रतिशत तक़रीबन समान ही होता है. हालांकि, आजकल, एमबीबीएस कोर्स पूरा करने के बाद स्टूडेंट्स हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन में एमबीए की पढ़ाई भी कर रहे हैं. कुछ स्टूडेंट्स आईएएस एग्जाम की भी तैयारी करते हैं ताकि एमबीबीएस डिग्री प्राप्त करने के बाद हेल्थ और मेडिकल सर्विसेज को ज्वाइन कर सकें.
मेडिसिन में पोस्टग्रेजुएशन और सुपर स्पेशलाइजेशन पूरा करने के बाद, आप किसी हॉस्पिटल में काम कर सकते हैं या फिर, ज्यादा अनुभव प्राप्त करने के लिए किसी मेडिकल कॉलेज में टीचिंग फैकल्टी के तौर पर काम कर सकते हैं, आप किसी प्राइवेट हॉस्पिटल के साथ मिलकर अपना प्राइवेट क्लिनिक भी खोल सकते हैं. किसी मेडिकल कॉलेज में एक टीचर के तौर पर, आप बड़ी आसानी से रु.60,000/- प्रतिमाह कमा सकते हैं.
किसी सर्जन की सैलरी पूरी तरह उसके अनुभव, टैलेंट और स्किल पर निर्भर करती है. औसतन, एमएस कोर्स पूरा करने के बाद एक सर्जन रु. 1 लाख प्रतिमाह कमा सकता है. स्किल्ड सर्जन्स की सैलरी उनके अनुभव और कौशल के अनुसार काफी अच्छी होती है.
किसी जनरल फिजिशियन और सर्जन की सैलरी अन्य कई फैक्टर्स जैसेकि, क्लिनिक, सिटी, हॉस्पिटल सेट-अप आदि की किस्मों और मेडिकल स्पेशलाइजेशन्स पर भी निर्भर करती है. किसी मेट्रो सिटी के मशहूर हॉस्पिटल में काम करने वाले डॉक्टर को अवश्य ही रूरल एरिया में काम करने वाले किसी डॉक्टर से कहीं ज्यादा अच्छी सैलरी मिलेगी.
एमडी और एमएस में मेडिकल पोस्ट ग्रेजुएट कोर्सेज करने के लिए, कैंडिडेट्स/ स्टूडेंट्स को कॉमन एंट्रेंस टेस्ट – एनईईटी पीजी (नेशनल एलिजिबिलिटी और एंट्रेंस टेस्ट) पास करना पड़ता है. सीईटी एग्जाम्स में सभी 3 वर्षों का सिलेबस शामिल होता है. काउंसलिंग के दौरान उक्त में से किसी एक ब्रांच को चुना जाता है. स्टूडेंट्स को अपने एरिया ऑफ़ इंटरेस्ट और एप्टीट्यूड का अवश्य पता होना चाहिए ताकि वे अपने पैशन और रूचि के अनुसार ही अपनी स्टडी ब्रांच या स्ट्रीम चुन सकें.
नोट: इस साल से भारत सरकार के निर्देश के मुताबिक CET एग्जाम को NRA – CET अर्थात नेशनल रिक्रूटमेंट एजेंसी कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट के तौर पर आयोजित किया जाएगा. यह एग्जाम अखिल भारतीय स्तर पर प्रत्येक वर्ष में 02 ऑनलाइन मोड में आयोजित किया जाएगा. SSC, IBPS और RRB द्वारा की जाने वाली सभी भर्तियों के लिए यह फर्स्ट लेवल का एंट्रेंस एग्जाम होगा. प्रत्येक स्टूडेंट्स द्वारा NRA – CET में हासिल किये गये अंक रिजल्ट की तिथि से अगले 03 साल तक मान्य होंगे.
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